भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका MCQ Quiz - Objective Question with Answer for भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका - Download Free PDF

Last updated on May 13, 2025

Latest भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका MCQ Objective Questions

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 1:

व्याकरण शिक्षण का उद्देश्य विद्यार्थियों को सम्प्रेषण करने में समर्थ बनाना है। निम्नलिखित में से कौन-सा इस उद्देश्य से मेल नहीं खाता है?

  1. विद्यार्थियों की निपुणता केवल उन्हीं पहलुओं पर होनी चाहिए, जो तात्कालिक सम्प्रेषण कार्य के लिए प्रासंगिक हैं
  2. त्रुटियों में सुधार करना सदैव अध्यापकों का ही पहला उत्तदायित्व नहीं होता है।
  3. विद्यार्थियों का प्रत्येक व्याकरणिक बिन्दु के प्रत्येक पहलू पर नियंत्रण होना चाहिए।
  4. विद्यार्थियों को इस प्रकार के प्रत्यक्ष निर्देशों की आवश्यकता है, जिनके माध्यम से व्याकरणिक बिन्दु बृहत्तर सम्प्रेषण संदर्भों से जुड़ सकें

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : विद्यार्थियों का प्रत्येक व्याकरणिक बिन्दु के प्रत्येक पहलू पर नियंत्रण होना चाहिए।

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 1 Detailed Solution

आधुनिक व्याकरण शिक्षण, शिक्षार्थियों को वास्तविक जीवन की स्थितियों में भाषा का सटीक और सार्थक उपयोग करने में सहायता करने पर केंद्रित है।

  • यह याद करने की अपेक्षा संचार पर तथा नियमों में सम्पूर्ण निपुणता की अपेक्षा व्यावहारिक उपयोग पर अधिक जोर देता है।

Key Pointsव्याकरण शिक्षण का उद्देश्य:

  • केवल कार्य-प्रासंगिक व्याकरण में निपुणता प्राप्त करने से छात्रों को तत्काल संचार आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
  • त्रुटि सुधार को प्राथमिकता से हटाने से अधिक धाराप्रवाह, कम बाधित अभिव्यक्ति संभव हो जाती है।
  • व्याकरण को संचार से जोड़ने वाला प्रत्यक्ष निर्देश इसके वास्तविक-विश्व मूल्य को पुष्ट करता है।

Hint

  • दिए गए विकल्पों में से एक विकल्प छात्रों को संवाद करने में सक्षम बनाने के उद्देश्य के अनुरूप नहीं है: विद्यार्थियों का प्रत्येक व्याकरणिक बिन्दु के प्रत्येक पहलू पर नियंत्रण होना चाहिए
  • यह दृष्टिकोण पारंपरिक, रूप-केंद्रित शिक्षण की ओर झुकाव रखता है, तथा यह अपेक्षा करता है कि शिक्षार्थी व्याकरण के सभी नियमों में गहराई से निपुणता प्राप्त कर लें, जिससे प्रवाह और आत्मविश्वास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • दूसरी ओर, संप्रेषणात्मक व्याकरण शिक्षण कार्यात्मक समझ को प्राथमिकता देता है जो भाषा के वास्तविक समय के उपयोग का समर्थन करता है।

अतः सही उत्तर है कि विद्यार्थियों का प्रत्येक व्याकरणिक बिन्दु के प्रत्येक पहलू पर नियंत्रण होना चाहिए।

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 2:

व्याकरण का शिक्षण मुख्यतः किसमें सुधार लाने के लिए उपयोगी है?

  1. साक्षरता
  2. संख्या बोध
  3. प्रवाह
  4. सटीकता

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : सटीकता

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 2 Detailed Solution

व्याकरण उन नियमों के समूह को संदर्भित करता है जो यह नियंत्रित करते हैं कि किसी भाषा में शब्दों की संरचना और उपयोग कैसे किया जाता है। भाषा शिक्षण में, व्याकरण निर्देश शिक्षार्थियों को यह समझने में मदद करता है कि सही वाक्य कैसे बनाएं और स्पष्ट रूप से संवाद कैसे करें।

Key Points

  • व्याकरण का शिक्षण मुख्य रूप से सटीकता में सुधार के लिए उपयोगी है। यह शिक्षार्थियों को सही वाक्यविन्यास, क्रिया रूपों, काल और विराम चिह्नों के साथ वाक्य बनाने में सक्षम बनाता है।
  • भाषा का यह सटीक उपयोग लेखन और बोलने दोनों में त्रुटियों को कम करता है।
  • व्याकरण पर ध्यान केंद्रित करने से छात्र भाषा के पैटर्न के बारे में अधिक जागरूक हो जाते हैं और अपने विचारों को अधिक सही ढंग से और प्रभावी ढंग से व्यक्त करने में सक्षम हो जाते हैं, विशेष रूप से औपचारिक संदर्भों में।

Hint

  • साक्षरता में केवल व्याकरण ही नहीं, बल्कि व्यापक पठन और लेखन कौशल भी शामिल है।
  • संख्या बोध गणितीय कौशल से संबंधित है और व्याकरण से इसका कोई संबंध नहीं है।
  • प्रवाह से तात्पर्य सहज और स्वाभाविक भाषा प्रयोग से है, जो विस्तृत व्याकरण निर्देश के बिना भी अभ्यास के माध्यम से विकसित हो सकता है।

अतः सही उत्तर सटीकता है।

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 3:

निम्नलिखित में से कौन-सी युक्ति 'संदर्भ में व्याकरण शिक्षण' से संबंधित है?

संदर्भ में भाषा की सामग्री प्रस्तुत करना शिक्षार्थियों का ध्यान भाषा की सामग्री की ओर दिलाना, जीवन की वास्तविक परिस्थितियों में भाषा प्रयोग के योग्य बनाना और शिक्षार्थियों का ध्यान खोजबीन के द्वारा उसके नियमों की ओर दिलाना। 

  1. स्कीमा का सृजन
  2. निगमनात्मक विधि 
  3. खोज-बीन विधि
  4. सचेतनता जागृत करना

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : सचेतनता जागृत करना

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 3 Detailed Solution

व्याकरण शिक्षण में, छात्रों को भाषा के नियमों को समझने और आत्मसात करने में मदद करने के लिए विभिन्न रणनीतियों का उपयोग किया जाता है। ये विधियाँ पारंपरिक नियम-आधारित निर्देश से लेकर अधिक संचारात्मक और संदर्भ-आधारित दृष्टिकोण तक हो सकती हैं। Key Points

  • प्रश्न में वर्णित रणनीति सचेतनता जागृत करने पर केंद्रित है।
  • यह उपागम सार्थक संदर्भों में विशिष्ट भाषा विशेषताओं की ओर शिक्षार्थियों का ध्यान आकर्षित करता है।
  • वास्तविक दुनिया की स्थितियों में भाषा के साथ अंतःक्रिया करके, शिक्षार्थी इस बात से अवगत हो जाते हैं कि कुछ व्याकरणिक संरचनाओं का उपयोग कैसे किया जाता है।
  • मुख्य पहलू यह है कि शिक्षार्थी स्वयं नियमों की खोज करते हैं, जिससे भाषा के साथ सक्रिय सहभागिता को बढ़ावा मिलता है।
  • यह विधि व्याकरणिक रूपों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रभावी है, साथ ही यह शिक्षार्थियों को प्रामाणिक संदर्भों में भाषा का उपयोग करने में भी मदद करती है।

Hint

  • स्कीमा का सृजन: स्कीमा सृजित करने में जानकारी को संरचनाओं या रूपरेखाओं में व्यवस्थित करना शामिल है, जिससे शिक्षार्थियों को नई विषय-वस्तु को समझने और उसके साथ संबंध बनाने में मदद मिल सके।
  • निगमनात्मक विधि: निगमनात्मक विधि में पहले व्याकरण के नियम प्रस्तुत किए जाते हैं, उसके बाद उदाहरण दिए जाते हैं। यह एक अधिक पारंपरिक, शिक्षक-केंद्रित दृष्टिकोण है, जहाँ छात्रों को सीधे नियम सिखाया जाता है।
  • खोज-बीन विधि: खोज-बीन विधि शिक्षार्थियों को भाषा के उपयोग के उदाहरणों की खोज करके स्वयं नियमों का अनुमान लगाने के लिए प्रोत्साहित करती है। हालाँकि यह कुछ हद तक चेतना बढ़ाने के समान है, लेकिन यह संरचित तरीके से विशिष्ट भाषा विशेषताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर उतना ध्यान केंद्रित नहीं करता है।

अतः सही उत्तर सचेतनता जागृत करना है।

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 4:

अपनी कक्षा में 'काल' का शिक्षण करते समय आप एक ही व्यक्ति के दो चित्र दिखाते हैं। एक चित्र पन्द्रह वर्ष पहले का है और एक चित्र जो अभी-अभी खींचा गया है। आप इन चित्रों के आधार पर उस व्यक्ति के वर्तमान और भूत- वह कैसा दिखता है, उसकी आदतें इन पर बात आरंभ करते हैं। आप किसका प्रयोग कर रहे हैं ?

  1. निर्देशात्मक व्याकरण (प्रसक्रिप्टिव)
  2. संरचनात्मक व्याकरण
  3. शिक्षणशास्त्रीय व्याकरण
  4. नियम आधारित व्याकरण

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : शिक्षणशास्त्रीय व्याकरण

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 4 Detailed Solution

व्याकरण नियमों और संरचनाओं की प्रणाली है जो भाषा की संरचना और उपयोग को नियंत्रित करती है। यह सार्थक और व्याकरणिक रूप से सही वाक्यों के निर्माण के लिए एक रूपरेखा प्रदान करके संचार में स्पष्टता और सुसंगतता सुनिश्चित करता है।

Key Points

  • शिक्षणशास्त्रीय व्याकरण उस शिक्षण दृष्टिकोण को संदर्भित करता है जो व्यावहारिक और प्रासंगिक तरीकों के माध्यम से व्याकरण संबंधी अवधारणाओं को शिक्षार्थियों के लिए स्पष्ट और प्रासंगिक बनाने पर केंद्रित है।
  • अतीत और वर्तमान स्थितियों पर चर्चा और तुलना करने के लिए चित्रों का उपयोग करना शैक्षणिक व्याकरण का एक उदाहरण है क्योंकि यह छात्रों को काल की अवधारणा को सार्थक और आकर्षक तरीके से समझने और लागू करने में मदद करता है।

Hint

  • निर्देशात्मक व्याकरण उन नियमों और मानदंडों को संदर्भित करता है कि भाषा को कैसे सिखाया जाए, इसके बजाय इसका उपयोग कैसे किया जाना चाहिए।
  • संरचनात्मक व्याकरण भाषा की संरचना पर ध्यान केंद्रित करता है, अक्सर शिक्षण रणनीतियों के बजाय औपचारिक नियमों और पैटर्न पर जोर देता है।
  • नियम आधारित व्याकरण से तात्पर्य प्रासंगिक या व्यावहारिक उदाहरणों को शामिल किए बिना, कड़ाई से नियमों के आधार पर व्याकरण पढ़ाने से है।

अतः, सही उत्तर शिक्षणशास्त्रीय व्याकरण है।

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 5:

व्याकरण के शिक्षण अधिगम में प्रक्रियात्मक ज्ञान क्या है?

  1. भाषा और उसकी संस्कृति को जानना।
  2. यह जानना कि व्याकरणिक प्रश्न / तत्वों को कैसे किया जाए।
  3. व्याकरणिक तत्वों के बारे में ज्ञान।
  4. व्याकरणिक तत्वों के नियमों को जानना।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : यह जानना कि व्याकरणिक प्रश्न / तत्वों को कैसे किया जाए।

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 5 Detailed Solution

ज्ञान को अक्सर परिचितता, समझ, ज्ञान, शिक्षा, जागरूकता आदि जैसे शब्दों का पर्याय माना जाता है। ज्ञान को डेटा, वैज्ञानिक सूत्रों, उत्पाद विनिर्देशों, मैनुअल, सार्वभौमिक सिद्धांतों आदि के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। ज्ञान घोषणात्मक या प्रक्रियात्मक हो सकता है।

Important Points

  • व्याकरण सीखने में प्रक्रियात्मक ज्ञान का तात्पर्य यह समझना है कि व्याकरणिक रूप उपयोग में कैसे कार्य करता है और उसे कैसे लागू किया जाता है।
  • यह किसी विशिष्ट कौशल या कार्य को कैसे निष्पादित किया जाए इसका ज्ञान है और इसे तरीकों, प्रक्रियाओं या उपकरणों के संचालन से संबंधित ज्ञान माना जाता है।
  • यह किसी विशेष क्षेत्र में उपयुक्त दक्षताओं के साथ-साथ चलता है। यह काफी हद तक सही अनुक्रम में सही क्रिया के निष्पादन पर आधारित है।
  • भाषा में प्रक्रियात्मक ज्ञान शिक्षार्थियों को व्याकरण और उनकी संरचनाओं को सीखने और संचार करते समय इसे लागू करने में मदद करता है। इसे अनिवार्य ज्ञान के रूप में भी जाना जाता है जिसका तात्पर्य है कि वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए गतिविधि की जानी चाहिए।

इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि व्याकरण सीखने में प्रक्रियात्मक ज्ञान यह जानना है कि यह जानना कि व्याकरणिक प्रश्न / तत्वों को कैसे किया जाए।

Additional Information

  • घोषणात्मक ज्ञान एक छात्र को व्याकरण के नियम का वर्णन करने और इसे संरचित और सीमित अभ्यास में लागू करने में सक्षम बनाता है। इसका अर्थ है शिक्षार्थियों के दिमाग में व्याकरण के नियमों या पैटर्न का ज्ञान स्थापित करना।

Top भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका MCQ Objective Questions

मुहावरे और लोकोक्तियों के प्रयोग के संदर्भ में कौन सा कथन उचित है?

  1. ये भाषा का अनिवार्य हिस्सा है।
  2. ये भाषा – प्रयोग को प्रभावी बनाते है।
  3. ये भाषा को नियंत्रित करते हैं।
  4. भाषा का अलंकरण इनका कार्य है।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : ये भाषा – प्रयोग को प्रभावी बनाते है।

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 6 Detailed Solution

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मुहावरा: यह एक ऐसा वाक्यांश है जो उस वाक्य से संबंधित सामान्य अर्थ के बोध की जगह विलक्षण अर्थ का बोध कराते हैं।
लोकोक्ति: यह एक ऐसा से वाक्यांश है जिसका प्रयोग वाक्य के अंत में कथन की पुष्टि के लिए या उदाहरण देने के लिए किया जाता है।

Key Points
हिंदी भाषा की सौंदर्य और आंचलिकता बनाए रखने हेतु शिक्षण कार्य के दौरान पाठ में निहित तथ्यों के संदर्भ में मुहावरों और लोकोक्तियों का उचित प्रयोग:

  • भाषा प्रयोग को प्रभावी बनाता है।
  • भाषिक अभिव्यक्ति को सजीव बनाता है।
  • पाठ को अर्थपूर्ण, प्रवाहपूर्ण और रुचिकर बनाता है।
  • बच्चों में लिखित-मौखिक अभिव्यक्ति कौशल का विकास करता है।
  • बच्चों को तथ्यों को संदर्भ में जोड़ कर आसानी से समझने में मदद करता है।

अतः, यह कहा जा सकता है कि मुहावरे और लोकोक्तियों भाषा – प्रयोग को प्रभावी बनाते है।

व्याकरण – अनुवाद विधि को किस नाम से भी जाना जाता है?

  1. ध्वन्यात्मक विधि
  2. प्रत्यक्ष विधि
  3. भण्डारकर विधि
  4. सैनिक विधि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : भण्डारकर विधि

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 7 Detailed Solution

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व्याकरण – अनुवाद विधि में शिक्षार्थियों को व्याकरणिक नियमों के आधार पर लक्ष्य भाषा अर्थात अन्य भाषा का भाषायी विवरण समझाया जाता है, इसके साथ मातृभाषा के साथ लक्ष्य भाषा में होने वाली अनुवाद प्रक्रिया को भी समझाया जाता है।  

  • व्याकरण – अनुवाद विधि को शास्त्रीय, पारम्परिक और भंडारकर विधि भी कहा जाता है। इसे भंडारकर विधि इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस विधि के संदर्भ में डॉ रामकृष्ण गोपाल भंडारकर ने दो पुस्तकें लिखी थी।
  • इस विधि में  लेखन कौशल को अधिक महत्व दिया जाता है।
  • इसमें  भाषा शिक्षण में मातृ भाषा के प्रयोग पर बल देती है।
  • यह विधि व्याकरण शिक्षण के निगमनात्मक विधि का अनुसरण करती है।
  • यह विधि पहले व्याकरण के नियमों को सिखाती है फिर उन नियमों को लक्ष्य से मातृ भाषा में अनुवाद में प्रयोग सिखाती है।

नोट:

 

ध्वन्यात्मक विधि

इस विधि में बच्चों को ध्वनियों तथा भाषा विज्ञान की शिक्षा दी जाती है। इसमें बच्चों को ध्वनियों का उच्चारण स्थान बता कर प्रत्येक ध्वनि से बनने वाले शब्दों से परिचित कराया जाता है।

 

प्रत्यक्ष विधि

इस विधि में द्वितीय भाषा शिक्षण के तहत विद्यार्थी लक्ष्य भाषा को मातृभाषा में अनुवादित किए बिना अर्थात मातृभाषा को मध्यस्थ बनाए बिना केवल लक्ष्य भाषा को प्रयोग में लाता है।

 

सैनिक विधि

इस विधि को द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिकी सैनिकों के द्वारा अन्य भाषा को समझने के लिए प्रयोग किया गया था। इसके तहत बच्चों को टेप रिकॉर्डर से पाठ सुनाया जाता है तथा बच्चे उसे सुन कर उसका अनुकरण करते हैं।

 

अतः, उपर्युक्त पंक्तियों से स्पष्ठ है कि व्याकरण – अनुवाद विधि को भण्डारकर विधि नाम से भी जाना जाता है।

विद्यार्थियों में भाषा की रूचि का विकास करने का उपयुक्त उपाय क्या है?

  1. विद्यार्थियों के व्याकरण के ज्ञान को बढ़ाना
  2. विद्यार्थियों को पाठ्यपुस्तकें पढ़वाना
  3. विद्यार्थियों को मौखिक रूप से अधिकाधिक समझाना
  4. उपर्युक्त सभी

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : विद्यार्थियों को मौखिक रूप से अधिकाधिक समझाना

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 8 Detailed Solution

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विद्यार्थियों में भाषा की रूचि का विकास करने का उपयुक्त उपाय है कि उसे भाषा प्रयोग के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध हो और ऐसे वातावरण में बालक सक्रिय रूप से भाग ले। बालक की अभिव्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक है बालको द्वारा भाषा कौशल के प्रयोग की क्षमता का विकास करना। विद्यार्थियों को मौखिक रूप से अधिकाधिक समझाने से तात्पर्य बालक के श्रवण कौशल या सुनना कौशल का विकास करना है।

भाषा रूची का विकास करने के बाद बच्चों को भाषा के चारों कौशलों को एकीकृत करके पढ़ाया जाता है।

Important Points

'सुनना' कौशल के महत्व:

  • सुनना, भाषा कौशल विकास का प्रथम और महत्वपूर्ण चरण है। सुनकर समझना ही ज्ञान का आधार बनता है।
  • श्रवण कौशल बच्चे को कथन से संबंधित उचित और सहज प्रतिक्रिया देने या निर्णय लेने योग्य बनाता है।
  • भाषा अनुकरण द्वारा सीखी जाती है। नये-नये शब्दों को सुनकर बालक अपने शब्द भण्डार मेंं वृद्धि करता है।
  • श्रवण कौशल बच्चे द्वारा प्रतिक्रिया देने के दौरान उनकी तर्किक क्षमता तथा चिंतन कौशल को भी सही दिशा देता है।
  • साहित्य की विभिन्न विधाओं का अध्ययन तथा इनकी व्याख्या को सुनकर ही उसकी विषय वस्तु को ग्रहण किया जा सकता है।
  • यह बच्चे को किसी कथन को सुनकर उस पर चिंतन मनन करने योग्य बनाता है। भाषा की नियमबद्ध व्यवस्था को समझने में 'सुनने' का विशेष महत्त्व है।

अतः निष्कर्ष निकलता है कि विद्यार्थियों में भाषा की रूचि का विकास करने का उपयुक्त उपाय विद्यार्थियों को मौखिक रूप से अधिकाधिक समझाना।

Hint 

  • व्याकरण का ज्ञान भाषागत शुद्धता के लिए आवश्यक है।
  • विद्यार्थियों के व्याकरण के ज्ञान को बढ़ाना अर्थात् बालक के भाषा प्रयोग में शुद्धता का विकास करना है।
  • व्याकरण का अकेले ज्ञान रूची का विकास नहीं करता बल्कि सीखने-सीखाने के वातावरण को नीरस बना देता है।
  • व्याकरण के ज्ञान को रूचीकर बनाने के लिए इसे अन्य पाठ्य सामग्री(गद्य, पद्य आदि) के साथ दिया जाता है।
  • विद्यार्थियों को पाठ्यपुस्तकें पढ़वाने से केवल पठन कौशल का विकास होता है।

निम्नलिखित में से किसके अभाव में हम पढ़ नहीं सकते?

  1. बारहखड़ी से परिचय
  2. वर्णमाला की क्रमबध्दता का ज्ञान
  3. संयुक्तक्षरों की पहचान
  4. लिपि से परिचय

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : लिपि से परिचय

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 9 Detailed Solution

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लिपि से तात्पर्य किसी भी भाषा को लिखने के ढंग से है अर्थात ध्वनियों के लेखन के लिए प्रयोग किए जाने वाले चिन्हों को लिपि कहते हैं।

लिपि से परिचय के अभाव में हम पढ़ नहीं सकते है क्योंकि लिपि के अभाव में:

  • भाषा उत्पन्न होकर भी नष्ट हो जाती है।
  • भाषा का कोई विशेष महत्व नहीं रह जाता है।
  • पठन को गुणवत्तापूर्ण नहीं बनाया जा सकता है।
  • भाषा की सूक्ष्मता और निश्चितता का अंत हो जाता है।

नोट: बारहखड़ी, वर्णमाला की क्रमबध्दता तथा संयुक्तक्षरों का ज्ञान भी पठन कौशल को नया आयाम देते हैं लेकिन इनकी महत्ता लिपि के बाद आती है।

व्याकरण शिक्षण की किस प्रणाली को विकृत रूप में सुग्गा प्रणाली भी कहते हैं?

  1. अव्याकृति प्रणाली
  2. सहयोग प्रणाली
  3. पाठ्यपुस्तक प्रणाली
  4. निगमन प्रणाली

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : पाठ्यपुस्तक प्रणाली

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 10 Detailed Solution

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व्याकरण किसी भाषा के बोलने तथा लिखने के नियमों की व्यवस्थित पद्धति है अर्थात व्याकरण भाषा को व्यवस्थित करने का कार्य करती है। व्याकरण शिक्षण की पाठ्यपुस्तक प्रणाली को विकृत रूप में सुग्गा प्रणाली भी कहते हैं क्योंकि:

  • यह व्याकरण शिक्षण की अमनोवैज्ञानिक विधि है।
  • इसमें बच्चे स्वयं पुस्तक में दिए हुए व्याकरण के नियम पढ़ते हैं।
  • इसमें बच्चों द्वारा पढ़े नियमों को शिक्षक सिर्फ उन्हें एकबार समझता है।
  • यह प्रणाली मुख्य रूप से बच्चों द्वारा पुस्तक से नियमों को रटे जाने से संबंधित है।

नोट:

अव्याकृति विधि/भाषा संसर्ग प्रणाली

यह विधि कुशल अध्यापक द्वारा शुद्ध व्याकरण के नियमों का ज्ञान तथा शुद्ध भाषा के प्रयोग पर बल देती है।

सहयोग प्रणाली

इस विधि के तहत व्याकरण पाठ के संदर्भ में सिखाया जाता है। जैसे शिक्षण कार्य के दौरान पाठ में आने वाले शब्दों का उपसर्ग-प्रत्यय या संधिविच्छेद बता कर।

निगमन प्रणाली

इस प्रणाली में पहले व्याकरण के नियमों और सिद्धांतों को प्रस्तुत किया जाता है तथा बाद में उदाहरणों के द्वारा नियमों की पुष्टि की जाती है।

 

अतः हम कह सकते है कि व्याकरण शिक्षण की पाठ्यपुस्तक प्रणाली प्रणाली को विकृत रूप में सुग्गा प्रणाली भी कहते हैं

असगंत शब्द है

  1. सुलेख
  2. श्रुतलेख
  3. अनुलेख
  4. प्रलेख

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : प्रलेख

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 11 Detailed Solution

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असंगत शब्द अर्थात ऐसा शब्द जिसका दिए गए अन्य शब्दों से संगति या मेल बैठता हो। उपरोक्त वर्णित शब्दों में प्रलेख शब्द असंगत शब्द है क्योंकि अन्य सभी शब्द किसी ना किसी रूप में लेखन प्रक्रिया से जुड़े हैं जबकि प्रलेख एक दस्तावेज है।

इसे इस तरह समझा जा सकता है:

  • सुलेख: सुंदर लिखावट या हस्तलिपि
  • श्रुतलेख: तथ्यों को सुन कर लिखने की प्रक्रिया
  • अनुलेख: घटना या कार्य आदि को लिखने की प्रक्रिया
  • प्रलेख: प्रामाणिक सूचना या जानकारी देने वाला दस्तावेज
अतः इन तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है प्रलेख शब्द इन शब्दों में असंगत है।

आकृति के बारे में ज्ञान वर्णन करना, सीमित अभ्यास में इसका प्रयोग करना क्या कहलाता है?

  1. व्याकरण का कार्यविधिक ज्ञान
  2. संदर्भ में व्याकरण
  3. व्याकरण का घोषणात्मक ज्ञान
  4. व्याकरण का व्यवहारात्मक ज्ञान

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : व्याकरण का घोषणात्मक ज्ञान

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 12 Detailed Solution

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घोषणात्मक ज्ञान -सीमित अभ्यास के रूप -विधान, वर्णन करना तथा प्रयोग करने के विषय में ज्ञान' को घोषणात्मक ज्ञान कहते हैं। व्याकरण सीखने में घोषणात्मक ज्ञान एक ऐसी क्रिया है जो व्याकरण के विषय वस्तु को सरल बना देती है तथा विषयो के हाव-भाव को स्पष्ट करने की क्षमता रखती है। व्याकरण सीखने में घोषणात्मक ज्ञान के अंतर्गत निम्न बाते है-

Key Points 

  • इसके अंतर्गत वास्तविक या यथार्थ सूचनाओं के बारे में बताया जाता है।
  • किसी विषय के बारे में उसका सम्पूर्ण वर्णन किया जाता है।
  • यह प्रयोग पर आधारित विषय का ज्ञान करती है। 
  • घोषणात्मक ज्ञान में प्रकारों के बारे में ज्ञान, वर्णन करना और बाद में उसे औपचारिक परिस्थितियों में प्रयोग करना बताया जाता है।
  • इसका उद्देश्य शिक्षार्थी के लिए भाषा संरचना का विकास करना है।
  • यह एक छात्र को व्याकरण के एक नियम का वर्णन करने और उस संरचना को अभ्यास में द्वारा क्रियान्वित करने में सक्षम बनाता है।
  • इसका अर्थ है शिक्षार्थियों के दिमाग में व्याकरण के नियमों या संरचना का ज्ञान स्थापित करना।

​​अतः यह निष्कर्ष निकलता है कि आकृति के बारे में ज्ञान वर्णन करना, सीमित अभ्यास में इसका प्रयोग करना व्याकरण का घोषणात्मक ज्ञान कहलाता है।

'शब्द संपदा का प्रयोग, उच्चारण तथा व्याकरण ______ है।

  1. अनौपचारिक भाषायी निवेश
  2. रूप उन्मुखी भाषायी निवेश
  3. अर्थ उन्मुखी भाषायी निवेश
  4. भाषा मूलक भाषायी निवेश

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : रूप उन्मुखी भाषायी निवेश

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 13 Detailed Solution

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प्राथमिक स्तर पर हिंदी भाषा के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है कि बच्चे अपना शब्द-भंडार विकसित कर सकें क्योंकि उचित शब्द भंडार बच्चों में संप्रेषण के साथ लेखन कौशल को दक्ष करता है जिससे बच्चे विभिन्न संदर्भ में भाषा प्रयोग में सफल होते हैं।

  • हिंदी साहित्य या हिंदी भाषा में शब्दों का ऐसा समूह जिसमें पर्यायवाची, विलोम, एकार्थी, अनेकार्थी, समरूपी भिन्नार्थक और अनेक शब्दों के लिए एक शब्द जैसे शब्दों को एक जगह इकट्ठा करके रखना ही शब्द भंडार है। 
  • ये सब व्याकरण के ही रूप हैं।
शब्द भंडार के प्रकार
  • पर्यायवाची शब्द 
  • विलोम शब्द 
  • एकार्थी शब्द 
  • अनेकार्थी शब्द 
  • समरूपी भिन्नार्थक शब्द 
  • अनेक शब्दों के लिए एक शब्द आदि। 

अतः निष्कर्ष निकलता है कि 'शब्द संपदा का प्रयोग, उच्चारण तथा व्याकरण रूप उन्मुखी भाषायी निवेश है।

निम्नलिखित में से कौन-सा संकेत भाषा के संदर्भ में सही नहीं  है?

  1. संकेत भाषा की व्याकरण होती है। 
  2. संकेत भाषा प्राकृतिक भाषा है।
  3. संकेत भाषा की व्याकरण नहीं होती है। 
  4. संकेत भाषा के बहुत से रूप हैं। 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : संकेत भाषा की व्याकरण नहीं होती है। 

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 14 Detailed Solution

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संकेत भाषा या सांकेतिक भाषा- सांकेतिक भाषा एक ऐसी भाषा है, जो अर्थ सूचित करने के लिए श्रवणीय ध्वनि पैटर्न में संप्रेषित करने के बजाय, दृश्य रूप में सांकेतिक पैटर्न (हस्तचालित संप्रेषण, अंग-संकेत) संचारित करती है-जिसमें वक्ता के विचारों को धाराप्रवाह रूप से व्यक्त करने के लिए, हाथ के आकार, विन्यास और संचालन, बांहों या शरीर तथा चेहरे के हाव-भावों का एक साथ उपयोग किया जाता है।

  • जहां भी बधिर लोगों का समुदाय मौजूद हो, वहां संकेत भाषा का विकास होता है।
  • उनके स्थानिक व्याकरण, उच्चरित भाषाओं के व्याकरण से स्पष्ट रूप से अलग है।
  • बच्चा सर्वप्रथम भाषा के इस रूप का प्रयोग अपनी बात समझाने में करता है। बालक अपने हाथों को हिला-डुला कर अपनी बात को सांकेतिक भाषा के माध्यम से व्यक्त करता है।

सांकेतिक भाषा का व्याकरण-

  • सांकेतिक भाषा में, व्याकरण मौखिक भाषा से थोड़ा भिन्न होता है।
  • सांकेतिक भाषा में हस्तचालित वर्णमाला (अंगुली वर्तनी) का प्रयोग किया जाता है।

अतः यह निष्कर्ष निकलता है कि संकेत भाषा की व्याकरण नहीं होती है। संकेत भाषा के संदर्भ में सही नहीं  है।

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विद्यार्थियों को व्याकरणिक नियमों की समझ देने के लिए ज़रूरी है कि:

  1. व्याकरण की पुस्तक का पठन करवाया जाए ।
  2. व्याकरण संबंधी परिभाषाएँ कंठस्थ करवाई जाएँ।
  3. नियमों को श्यामपट्ट पर लिखते हुए उसकी व्याख्या की जाए।
  4. विद्यार्थियों को पढ़ने-लिखने व बोलने-सुनने के अधिकाधिक अवसर दिए जाएँ ।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : विद्यार्थियों को पढ़ने-लिखने व बोलने-सुनने के अधिकाधिक अवसर दिए जाएँ ।

भाषा सीखने में व्याकरण की भूमिका Question 15 Detailed Solution

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व्याकरण किसी भाषा के बोलने तथा लिखने के नियमों की व्यवस्थित पद्धति है अर्थात व्याकरण भाषा को व्यवस्थित करने का कार्य करती है। हिंदी भाषा शिक्षण का महत्वपूर्ण उद्देश्य बच्चों को हिंदी भाषा के विविध स्वरूपों की जानकारी देना है।

विद्यार्थियों को व्याकरणिक नियमों की समझ देने का महत्व:

  • छात्रों को विभिन्न ध्वनियों का ज्ञान देना।
  • छात्रों को शुद्ध उच्चारण की शिक्षा प्रदान करता है।
  • सुक्ति, मुहावरों, लोकोक्तियों का उचित प्रयोग आदि।
  • शुद्ध रूप में बोलने तथा लिखने के कौशल का विकास।
  • छात्रों में मौलिक वाक्य संरचना की योग्यता का विकास।
  • वाक्य रचना के नियमों एवं विराम चिन्हों का शुद्ध प्रयोग आदि।

Important Points

विद्यार्थियों को व्याकरणिक नियमों की समझ देने के लिए ज़रूरी बातें:

  • शुद्ध उच्चारण की शिक्षा के लिए बोलने व सुनने के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करना।
  • भाषा में निहित ध्वनियों और शब्दों को खेल के साथ आनन्द लेते हुए सीखाना, जैसे- इन्ना, विन्ना, तिन्ना आदि।
  • सुक्ति, मुहावरों, लोकोक्तियों का उचित प्रयोग के लिए विभिन्न विधाओं को पढ़ने के अधिक से अधिक अवसर देना।
  • तरह-तरह की कहानियों, कविताओं या रचनाओं की भाषा की बारीकियों जैसे- संज्ञा, सर्वनाम, विभिन्न विराम चिन्हों की पहचान कराना।
  • एक दुसरे की लिखी हुयी रचनाओं को सुनने, पढ़ने और उन पर अपनी राय देने, उनमें अपनी बात जोड़ने, बढ़ाने और अलग-अलग ढंग से लिखने के अवसर देना।

​अतः, यह निष्कर्ष निकलता है कि विद्यार्थियों को व्याकरणिक नियमों की समझ देने के लिए ज़रूरी है कि विद्यार्थियों को पढ़ने-लिखने व बोलने-सुनने के अधिकाधिक अवसर दिए जाएँ।

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